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ग़ज़ल
आना है यूँ मुहाल तो इक शब ब-ख़्वाब आ
मुझ तक ख़ुदा के वास्ते ज़ालिम शिताब आ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
कुछ अपनी जो हुर्मत तुझे मंज़ूर हो ऐ शैख़
तू बहस न मय-ख़्वारों से चल दूर हो ऐ शैख़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बहस उस की मेरी वक़्त-ए-मुलाक़ात बढ़ गई
बातें हुईं कुछ ऐसी कि बस बात बढ़ गई
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ऐ शब हिज्र कहीं तेरी सहर है कि नहीं
नाला-ए-नीम-शबी तुझ में असर है कि नहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ऐ इश्क़ तेरी अब के वो तासीर क्या हुई
शोर-ए-जुनूँ किधर गया ज़ंजीर क्या हुई
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
इस इश्क़ ओ जुनूँ में न गरेबान का डर है
ये इश्क़ वो है जिस में हमें जान का डर है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
कपड़े बदल के आए थे आग मुझे लगा गए
अपने लिबास-ए-सुर्ख़ की मुझ को भड़क दिखा गए